15 फरवरी, इंटरनेशनल चाइल्हुड कैंसर दिवस, (ICCD) इंटरनेशनल सोसाइटी आॅफ पैडरियेटिक आनकोलाॅजी, ग्लोबल अवेयरनेस कैंपेन के तहत घोषित किया गया है। इस कैंपेन का उद्देश्य छोटे बच्चे एवं किशोर पेसेन्टस एवं उनके परिवारों की मदद करना है। इसका एजेंडा इस बीमारी से लड़ने वाले बच्चों के वैश्विक सरवाइवल रेट 60% तक करने का टार्गेट है। मैं बहुत सारे देशों के वेबसाइट पर, इस बारे में अध्ययन कर रही थी। जहाँ युरोपीय देशों के लोग एक-जुट हो कर संवेदनशीलता से इस समस्या पर विचार करते हैं। हमारे देश में इस पर बहुत कुछ करने की आवश्यक्ता है। अगर परिवार सम्पन्न है तो सुविधाओं तक पहुंच जाती है, अन्यथा ईश्वर जो चाहे…..।
मेरे लिखने का उद्देश्य है, कि मैं लोगों को इस बारे में संवेदनशील होने की अपील करूं। उम्मीद करती हूँ, कि मैं अपनी बात सही तरीके से रख सकूं। अगर हम समस्या की गंभीरता को समझेंगे, तभी सरकार भी कुछ कर पाएगी। क्योंकि इतने बड़े पैमाने पर कार्य करना, सरकार की मदद के बीना असंभव है।
चाइल्हुड कैंसर में, जहां अच्छे इन्कम वाले देशों में सरवाइवल रेट अच्छी है वहीं… लो इन्कम देशों में सब कुछ जैसे-तैसे होता है। हमारे यहाँ एन.जी.ओ हैं, परन्तु देश के पापुलेश के अनुपात में बहुत कम है। ये बेसिकली उपचार में ही मदद कर पाती है। जो काफी नहीं है। दान-पुण्य एवं धर्म के लिए, चाइल्ड मरीजों को गिफ्ट, एवं भोजन बांटे जाते हैं। हां, ये संवेदनशील होने की पहचान है। फिर भी परिस्थित बहुत चिन्तित कर देने योग्य है।
इस विषय पर गम्भीरता से विचार करने एवं बहुत बड़े पैमाने पर कार्य करने की आवश्यक्ता है। जिसके लिए चर्चा बहुत आवश्यक है। सबसे बड़ी समस्या हाइजीन की है। मैं कैसे लखु ?? कि….
हमारे देश में, कम-से-कम प्रशासन इतना संवेदनशील है — कि लो पर्वीलेज्ड पीपुल्स को सरवाइवल के लिए रोड के किनारे टेंट लगाने और भीख मांग कर जिंदा रहने की अनुमति देने की कृपा करती है। जहाँ कुछ उदार ह्रदय भोजन बांट सके। माताएं अपने राजदुलारों को सीने से लगाए, भीनभीनाति मक्खियों को भगाती टाॅवेल में लपेटे, हर बिमाड़ी से बचाने में सफल हो जाती हैं। मैं उन सब को ईश्वर मानती हूं। जो ऐसी परिस्थित में लड़ने का साहस करती हैं। ऐसा चमत्कार ईश्वर ही कर सकते हैं।
ये महशुस करना कि आगे क्या होगा ? पता नहीं… फिर भी बहुत लम्बे इलाज से गुजरना। कल कहां रहेंगे …. पता नहीं ? फिर भी इलाज को पूरी करेंगे, इस बात के विश्वास में जिंदा रहना। ऐसे हौसलों की ताकत बहुत बड़ी होती है। जो सिर्फ ईश्वर के पास होती है।
देश में कैंसर के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर का गंभीर अभाव है। ये बेसिक सुविधाएं हैं। जिस पर सभी का बेसिक अधिकार है। बीमारी की गंभीरता, बच्चे, सुविधाओं का अभाव समस्या को इतना जटिल बना देती है कि बीमारी से लड़ने की शक्ति कम हो जाती है। मनोबल साथ छोड़ने लगता है।
दुसरी तरफ अगर हम कल्पना करें, कि ऐसी बीमारी में सारी सुविधाए सरकार द्वारा दी जाए। रहने की साफ-सुथरी व्यवस्था से लेकर हाइजेनिक पौष्टिक भोजन तक की व्यवस्था सरकार द्वारा की जाए तो कितना अच्छा होगा। सरवाइवल रेट में अवश्य बढोतरी होगी।
कई बार हम कहते हैं, भारत में वैश्विक सुविधाओं के लिए कुछ नहीं किया जा सकता है। मैं कहना चाहूँगी — सिर्फ पाॅलिटीकल एजेंडा के लिए यदि स्टेचु आफ यूनिटी बनाई जा सकती है, बड़े-बड़े मंदिर-मस्जिद, गुरूद्वारे एवं पार्लियामेंट बनाए जा सकते हैं, तो हास्पीटल क्युं नहीं बनाया जा सकता है ?? वैश्विक सुविधाए क्युं नहीं दी जा सकती हैं ?? अगर नफरत के लिए बहुत कुछ किया जा सकता है, तो सेवा के लिए क्युं कुछ नहीं किया जा सकता है ?? सोंचने की आवश्यकता है। हम जो चाहते हैं, हमारी सरकार हमे देती है। अगर हम मंदिर-मस्जिद गुरूद्वारे में ईश्वर को ढूंढेगे, तो हमे वो वहाँ मिलेगें या नहीं हम विश्वास से नहीं कह सकते हैं। परन्तु नर-सेवा से नारायण अवश्य मिलेंगे।